प्रवक्ता रूपेश का बयान हत्याकांड रोके बिना संभव नहीं शांति प्रक्रिया

कांकेर– बस्तर क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय नक्सली संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उत्तर-पश्चिम सब जोनल ब्यूरो ने शांति वार्ता को लेकर नया बयान जारी किया है। संगठन के प्रवक्ता रूपेश द्वारा जारी इस प्रेस नोट में राज्य सरकार से ‘अनुकूल माहौल’ बनाने की मांग की गई है। साथ ही स्पष्ट किया गया है कि जब तक बस्तर क्षेत्र में कथित हत्याकांड और सुरक्षा अभियान जारी रहेंगे, तब तक कोई भी सार्थक संवाद संभव नहीं है।
प्रवक्ता रूपेश ने राज्य के उप मुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री विजय शर्मा के बयान का हवाला देते हुए कहा कि शांति वार्ता के लिए माहौल बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण लगातार दहशत में जी रहे हैं, पलायन कर रहे हैं, और लगातार चल रहे अभियान इन इलाकों के नागरिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।
रूपेश ने सरकारी मुठभेड़ों में मारे जा रहे नक्सलियों को “हत्याकांड” की संज्ञा दी और आरोप लगाया कि इन घटनाओं से बस्तर के आदिवासी समुदाय को डराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ‘आत्मसमर्पण’ को हल मानना एक गलत सोच है, और इससे समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचा जा सकता।
प्रेस नोट में नक्सल प्रवक्ता ने जोर देकर कहा कि अगर सरकार अभियान रोकने का संकेत देती है, तो संगठन शांति वार्ता की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए तत्पर है। साथ ही उन्होंने कहा कि गृहमंत्री विजय शर्मा द्वारा उठाए गए विषयों को भी वार्ता एजेंडे में शामिल किया जा सकता है।
रूपेश ने बस्तर से शीर्ष नक्सली नेताओं के पलायन की खबरों को सिरे से खारिज करते हुए उदाहरण दिया कि एसजेडसी (सब जोनल कमेटी) की सदस्य कामरेड रेणुका उर्फ चैते ने बीमारी के बावजूद संगठन के लिए जान कुर्बान की, और उनके सैकड़ों समर्थक आज भी संगठन से जुड़े हैं।
नक्सली प्रवक्ता ने जनवादी संगठनों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों से भी वार्ता के समर्थन में आगे आने की अपील की है। अंत में रूपेश ने सुरक्षा बलों के जवानों को “हमारा ही भाई” बताते हुए कहा कि “हमें आपस में लड़ाने की स्थिति पैदा की गई है।” उन्होंने पुलिस बल से भी वार्ता प्रक्रिया के समर्थन में खड़े होने की अपील की।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब हाल ही में बस्तर में हुए आईईडी धमाकों और सुरक्षा अभियानों के चलते क्षेत्र एक बार फिर अशांत है। अब यह देखना अहम होगा कि क्या राज्य सरकार इस प्रस्ताव को गंभीरता से लेते हुए शांति के रास्ते पर कोई ठोस पहल करती है या नहीं।
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