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क्या नियमों में मानवीयता की कोई जगह नहीं?
क्या नियमों में मानवीयता की कोई जगह नहीं?

सिर्फ 4 मिनट की देरी… और तीन छात्राओं का एक साल बर्बाद!

क्या नियमों में मानवीयता की कोई जगह नहीं?
क्या नियमों में मानवीयता की कोई जगह नहीं?

कांकेर, :- परीक्षा में केवल चार मिनट की देरी, और बदले में एक साल का इंतजार! यह कहानी है उन तीन छात्राओं की जिन्हें प्री बीएड परीक्षा में केवल चार मिनट लेट पहुंचने के कारण परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं करने दिया गया। नतीजतन, उनका एक पूरा शैक्षणिक वर्ष अब अधर में लटक गया है।

आज कांकेर पीजी कॉलेज में आयोजित हुई प्री बीएड और डीएलएड परीक्षा की दूसरी पाली दोपहर 2 बजे शुरू होनी थी। लेकिन ज्योति यादव, रमिता कोमा और डेमेश्वरी साहू नाम की तीन छात्राएं केंद्र पर 2:04 बजे पहुंचीं और यहीं से उनके लिए परीक्षा केंद्र का दरवाज़ा बंद हो गया।

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रोक दिया गया, सुनवाई तक नहीं हुई

केंद्र पर तैनात महिला सुरक्षाकर्मियों ने छात्राओं को प्रवेश से रोक दिया। युवतियों ने कई बार विनती की, रोईं तक, लेकिन न तो उन्हें भीतर जाने दिया गया और न ही परीक्षा केंद्र प्रभारी से मुलाकात कराई गई।

इनमें से एक परीक्षार्थी रमिता कोमा की स्थिति और भी संवेदनशील थी। उन्होंने बताया कि वे अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाने के कारण थोड़ी देर से पहुंचीं। भावुक रमिता ने कहा:

“मैं मां हूं… घर की जिम्मेदारियों के बीच परीक्षा देने आई थी… बस चार मिनट लेट हो गई… अब एक साल और इंतजार करना होगा।”

क्या नियमों में मानवीयता की कोई जगह नहीं ?

सवाल यह नहीं है कि नियम क्यों हैं — बल्कि यह है कि क्या हर परिस्थिति में उन नियमों को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की जरूरत नहीं है ? सिर्फ चार मिनट की देरी, कोई नकल की आशंका नहीं, कोई अव्यवस्था नहीं… फिर भी तीन छात्राओं को बाहर करना — क्या यह शिक्षा व्यवस्था की निष्ठुरता नहीं दर्शाता? इन छात्राओं को अब अगले वर्ष की परीक्षा का इंतजार करना होगा। सवाल यह है कि क्या परीक्षा प्रणाली में थोड़ी लचीलापन, थोड़ी सहानुभूति और थोड़ी इंसानियत की जगह नहीं होनी चाहिए?

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About Prakash Thakur

प्रकाश ठाकुर, पेज 16 न्यूज़ के मुख्य संपादक हैं। एवं वर्षों से निष्पक्ष, सत्य और जनहितकारी पत्रकारिता के लिए समर्पित एक अनुभवी व जिम्मेदार पत्रकार के रूप में कार्यरत हूँ।

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