कांकेर:-2028-29 के आम चुनाव को लेकर जहां भाजपा अभी से जमीन पर उतरकर रणनीतिक रूप से कार्य कर रही है, वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब भी संगठनात्मक उलझनों में फंसी हुई नजर आ रही है। कांकेर जिले में कांग्रेस की स्थिति यह बताने के लिए काफी है कि पार्टी के आंतरिक ढांचे में बदलाव की रफ्तार कितनी धीमी है और इसका सीधा असर कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ रहा है। भाजपा ने मिशन 2028-29 को लेकर अपने सभी संगठनों को अलर्ट मोड में डाल दिया है। पार्टी ने जिलों से लेकर बूथ स्तर तक सक्रिय कार्यकर्ताओं की पहचान कर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर दी है। संगठनात्मक शक्ति को और मजबूत करने के लिए जमीनी संवाद, सोशल मीडिया प्रचार और सांगठनिक बैठकों का दौर जारी है। भाजपा नेतृत्व पहले से यह तय कर रहा है कि चुनाव में किन चेहरों पर दांव लगाना है।
कांग्रेस का ठहराव: न बदलाव, न बहस, न बढ़त
इसके विपरीत कांग्रेस संगठन में बदलाव की प्रक्रिया लंबे समय से ठप है। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता लगातार यह शिकायत कर रहे हैं कि जिला और ब्लॉक स्तर पर वर्षों से एक ही चेहरों को पदों पर बनाए रखा गया है, जिससे नए और ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। कांकेर जिले में जिला कांग्रेस कमेटी और ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्षों के कार्यकाल पर नजर डालें, तो स्थिति बेहद चिंताजनक है। कई ब्लॉक अध्यक्ष 10 से 15 वर्षों तक एक ही पद पर जमे हुए हैं, जिससे संगठन में ताजगी और उत्साह का अभाव दिखता है।
वर्तमान में कांकेर जिले के विभिन्न ब्लॉकों में कांग्रेस अध्यक्षों का कार्यकाल इस प्रकार है:
- कांकेर (शहर) – मनोज जैन: 15 वर्ष
- कांकेर (ग्रामीण) – रोमनाथ जैन: 07 वर्ष
- चारामा – ठाकुर राम कश्यप: 10 वर्ष
- भानुप्रतापपुर – बीरेंद्र ठाकुर: 15 वर्ष
- अंतागढ़ – अखिलेश चंदेल: 05 वर्ष
- दुर्गूकोंदल – सोंपसिंग आंचला: 10 वर्ष
- नरहरपुर – रोहीदास मरकाम: 05 वर्ष
- आमाबेड़ा – खिलेश मरकाम: पहला कार्यकाल
- पंखाजूर – इन्द्रजीत विश्वास: दूसरा कार्यकाल
नेतृत्व की अनिच्छा और पद लेने से इनकार
जानकारों के अनुसार, जब संगठन में बदलाव की बात आती है तो कई वरिष्ठ और अनुभवी नेता खुद जिम्मेदारी लेने से पीछे हट जाते हैं।
नेता यह कहने में पीछे नहीं रहते कि पार्टी में आपसी गुटबाजी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने माहौल को विषाक्त बना दिया है । सूत्र बताते हैं कि कांकेर में नए जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर हेमनारायण गजबल्ला, सुनील गोस्वामी, हेमंत ध्रुव, बसंत यादव आदि के नामों पर चर्चा है, लेकिन अन्य अधिकांश नेताओं ने साफ कर दिया कि वे ऐसे संगठन में नेतृत्व नहीं संभालना चाहते, जहां फैसले में देरी और समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी होती हो ।
पार्टी छोड़ने वालों की लंबी फेहरिस्त
कांग्रेस की कमजोर होती संगठनात्मक स्थिति ने कई कद्दावर नेताओं को पार्टी से नाता तोड़ने के लिए मजबूर किया है। जिनमें पूर्व विधायक शिशुपाल शोरी, गौतम लुंकड़, दिलीप खटवानी, दीपक शर्मा, अनूप शर्मा कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
गौतम लुंकड़ ने कहा,
“कांग्रेस कभी हमारी आत्मा थी, लेकिन अब वो सिर्फ गुटबाज नेताओं का मंच बन गई है । जमीनी कार्यकर्ता हाशिए पर हैं, इसलिए मैंने यह कठिन निर्णय लिया।”
विंग भी निष्क्रिय, विरोध की आवाजें कमजोर
कांग्रेस के प्रमुख संगठनों जैसे महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, एनएसयूआई, सेवादल की सक्रियता अब लगभग शून्य है।
राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराना, जनहित मुद्दों पर प्रदर्शन करना जैसे कदम अब इतिहास बनते जा रहे हैं।
एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के दबे शब्दों में कहते है,
“न तो संगठन बुलाता है, न ही कोई नेतृत्व कर्ता है । हम समझ नहीं पा रहे है कि पार्टी को किस दिशा में जा रही है ।”
कांग्रेस जिलाध्यक्ष की स्वीकारोक्ति
कांकेर जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुभ्रदा सलाम भी स्वीकार करती हैं कि पार्टी को पुनर्गठन की सख्त जरूरत है । वे कहती हैं,
“मैंने कई बार प्रदेश नेतृत्व से आग्रह किया कि संगठन में बदलाव हो, युवाओं और सक्रिय कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी जाए, लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट आदेश नहीं आया है।”
समय रहते नहीं चेते, तो फिर खिसक जायेगी जमीन
कांग्रेस के लिए यह समय आत्ममंथन का है। लगातार हार, कार्यकर्ताओं का मोहभंग, निष्क्रिय संगठन और नेतृत्व की अनिच्छा-यह सब पार्टी को कमजोर कर रहे हैं । अगर आलाकमान ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया तो आने वाले चुनाव में कांग्रेस न केवल पीछे रह जाएगी, बल्कि प्रतिस्पर्धा से बाहर ही ना हो जाए ।
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