
नारायणपुर:- छत्तीसगढ़ की समृद्ध जनजातीय कला परंपरा को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने वाले पंडी राम मंडावी को इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उन्हें पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला में उनके अद्वितीय योगदान के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा प्रदान किया गया।
नारायणपुर जिले के निवासी मंडावी गोंड मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। वे ‘सुलुर’ (बस्तर बांसुरी) के निर्माण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और उसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाने में लगाया है।
पंडी राम मंडावी: एक नज़र में
- उम्र: 68 वर्ष
- कला की शुरुआत: 12 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजों से सीखी पारंपरिक कला
- मुख्य क्षेत्र: लकड़ी पर उकेरी चित्रकारी, मूर्तियां, पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण
- पहचान: भारत सहित 8 से अधिक देशों में कला का प्रदर्शन
- प्रशिक्षण: 1000 से अधिक कारीगरों को दिया प्रशिक्षण
8 देशों में कला का प्रदर्शन, 1000 से अधिक कारीगरों को दिया प्रशिक्षण
पंडी राम मंडावी ने अब तक 8 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। उन्होंने न केवल अपनी कला को सहेजा, बल्कि एक हजार से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षण देकर इस विरासत को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का अनुकरणीय कार्य किया है। उनका जीवन कठिनाइयों और आर्थिक संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपनी कला से समझौता नहीं किया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उन्हें पद्मश्री सम्मान मिलने पर बधाई देते हुए कहा,
“पंडी राम मंडावी जी का सम्मान पूरे छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का क्षण है। उन्होंने बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखा और उसे वैश्विक पहचान दिलाई है।”
पंडी राम मंडावी न केवल एक कलाकार हैं, बल्कि बस्तर की जीवंत विरासत के संवाहक भी हैं। उनका यह सम्मान बस्तर की कला, संस्कृति और जनजातीय परंपराओं के गौरव को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करता है।
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