
कांकेर भारतीय सेना के शहीद जवान अजय गोटी के सम्मान में गोटी टोला में बनाए जा रहे स्मारक को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। मामला इतना बढ़ गया कि चारामा थाना तक पहुंच गया, जहां शहीद की पत्नी और ग्रामीणों ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए पूर्व सांसद मोहन मंडावी पर स्मारक निर्माण में अप्रत्यक्ष रूप से अड़चन डालने का आरोप लगाया। प्रदर्शनकारियों ने मामले की निष्पक्ष जांच और कार्यवाही की मांग की।
पूर्व सांसद ने प्रेसवार्ता कर दिया बयान
पूर्व सांसद एवं आदिवासी नेता मोहन मंडावी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए प्रेसवार्ता में कहा:
“मैं खुद एक आदिवासी हूं, और एक शहीद जवान के स्मारक का विरोध करना मेरे लिए पाप के समान है। मैंने कभी किसी भी रूप में स्मारक निर्माण का विरोध नहीं किया। बल्कि मैं चाहता हूं कि यह काम गांववासियों की आम सहमति से सम्मानपूर्वक पूरा हो।”
उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग उनकी छवि धूमिल करने की साजिश कर रहे हैं।
“मैं एक रामायणी भी हूं, और हमेशा धर्मांतरण के खिलाफ खुलकर बोला हूं। शायद यही कारण है कि कुछ साजिशकर्ता ग्रामीणों को बहका कर मेरे नाम को विवाद से जोड़ रहे हैं।”
घटना का ब्योरा
मोहन मंडावी ने बताया कि विवाद जिस दिन शुरू हुआ, उस दिन वे खेत पर काम करने गए थे। लौटते वक्त उन्होंने गांव में एक भीड़ देखी और वहां रुककर जानकारी ली।
“मुझे बताया गया कि एक साहू परिवार पेड़ कटाई और जमीन को लेकर विवाद कर रहा था। मैंने केवल यही कहा कि आपसी सहमति से मामला सुलझा लें और फिर मैं वहाँ से निकल गया। इसके बाद क्या हुआ, मुझे जानकारी नहीं थी।”
स्मारक के साथ गार्डन का प्रस्ताव
पूर्व सांसद ने बताया कि शहीद अजय गोटी का स्मारक पहले ही बन चुका है, और उन्होंने गांव के लोगों से यह प्रस्ताव भी साझा किया था कि स्मारक के आसपास एक स्मृति उद्यान (गार्डन) भी बनाया जाए। उन्होंने कहा:
“मैंने हरसंभव सहयोग देने का भरोसा भी दिलाया था, लेकिन अब मेरे नाम को जबरन घसीटकर राजनीति की जा रही है।”
जांच की मांग
मोहन मंडावी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह पूरा मामला एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा है।
“जो लोग ग्रामीणों को उलझाकर बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं, उनकी पहचान कर जांच होनी चाहिए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।”
निष्कर्ष
यह मामला अब केवल स्मारक निर्माण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ताने-बाने भी जुड़ते जा रहे हैं। प्रशासन और पंचायत के लिए यह चुनौती है कि वे सभी पक्षों को विश्वास में लेकर सुलह समाधान का रास्ता निकालें, ताकि शहीद जवान की स्मृति अपमानित न हो और गांव की शांति बनी रहे।
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