नक्सलवाद के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी सफलता, कांकेर बना वीरता का प्रतीक

कांकेर, 16 अप्रैल 2025:- छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले ने नक्सलवाद के विरुद्ध चल रही लड़ाई में एक ऐसा इतिहास रच दिया है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा। आज से ठीक एक वर्ष पूर्व, 16 अप्रैल 2024 को कांकेर पुलिस के जवानों ने अदम्य साहस, अनुशासन और वीरता का परिचय देते हुए 29 खूंखार माओवादियों को एक भीषण मुठभेड़ में मार गिराया था। यह मुठभेड़ छत्तीसगढ़ के नक्सल इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी सफलता मानी जाती है।
कैसे हुआ ऐतिहासिक ऑपरेशन
15 अप्रैल 2024 को कांकेर पुलिस को खुफिया सूत्रों से सूचना मिली कि नारायणपुर और अबूझमाड़ की सीमा पर स्थित ग्राम हापाटोला के जंगलों में बड़े माओवादी नेता किसी बड़ी साजिश के तहत इकट्ठे हुए हैं। सूचना मिलते ही कांकेर पुलिस तत्काल एक्शन मोड में आई और डीआरजी व बीएसएफ की संयुक्त टीम को रातोंरात जंगलों में भेजा गया। टीम ने भीषण गर्मी, दुर्गम पहाड़ी रास्तों और संभावित IED खतरों के बीच हापाटोला के जंगलों में रातभर पैदल यात्रा कर ऑपरेशन को अंजाम दिया। अगले दिन सुबह जैसे ही सुरक्षाबल माओवादियों के करीब पहुंचे, गोलियों की गूंज से जंगल दहल उठा। करीब 5 घंटे तक चली इस मुठभेड़ में दो शीर्ष DVCM नक्सली शंकर राव और ललिता समेत कुल 29 माओवादी ढेर कर दिए गए।
अभूतपूर्व बरामदगी और रणनीतिक प्रभाव
मुठभेड़ के बाद भारी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार, विस्फोटक और नक्सली दस्तावेज बरामद हुए। इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि सुरक्षाबलों को कोई नुकसान नहीं हुआ। कांकेर एसपी ने बताया कि यह ऑपरेशन अत्यंत जोखिमपूर्ण था, लेकिन जवानों ने बिना रुके, बिना थके अपना पराक्रम दिखाया।
बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ नई शुरुआत
इस मुठभेड़ के बाद बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद की कमर टूट गई। एक साल के भीतर 16 और माओवादी मुठभेड़ों में मारे गए, प्रभाकर दंपत्ति जैसे इनामी नक्सली गिरफ्तार किए गए और कई स्थानीय माओवादी आत्मसमर्पण की राह पर लौटे। क्षेत्र में शांति लौटने लगी है और पुनर्वास योजनाओं को बल मिल रहा है।
सरकार का रुख और पुनर्वास नीति
राज्य सरकार ने नक्सल पुनर्वास नीति में संशोधन की घोषणा की है, जिसके तहत मुख्यधारा में लौटने वाले माओवादियों को अब दोगुनी सुविधाएं मिलेंगी। वहीं पुलिस प्रशासन भी आत्मसमर्पण करने वालों को हरसंभव सहयोग देने को तैयार है।
एसपी की अपील और संदेश
कांकेर एसपी ने इस अवसर पर सभी जवानों को बधाई दी और बस्तर की जनता से अपील की कि वे शांति और विकास की राह पर सरकार और प्रशासन का सहयोग करें। उन्होंने कहा – “बस्तर में जब तक अंतिम बंदूक शांत नहीं होगी, विकास की गति अधूरी रहेगी। अगर माओवादी हथियार छोड़ते हैं, तो यह लड़ाई अपने आप खत्म हो जाएगी।”
निष्कर्ष
16 अप्रैल अब सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि नक्सलवाद के खिलाफ जीत का प्रतीक बन चुका है। कांकेर पुलिस के वीर जवानों ने यह साबित कर दिया कि देश के दुश्मनों के लिए कोई जगह नहीं है। यह दिन बस्तर में शांति, विश्वास और विकास की ओर एक निर्णायक कदम है।
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