मैनपाट की मझवार महिला की व्यथा: जब न्याय भी मौन हो गया

सरगुजा:– जिले के मैनपाट क्षेत्र में मझवार जनजाति की एक महिला के साथ हुई घटनाएं न केवल एक दिल दहला देने वाली आपराधिक कहानी बयां करती हैं, बल्कि हमारे सामाजिक और न्यायिक ढांचे की गहरी विफलता को भी उजागर करती हैं। यह मामला उस महिला की पीड़ा का प्रतीक बन चुका है, जो वर्षों से न्याय के लिए संघर्ष कर रही है, एक साथ दुष्कर्म, ठगी और प्रशासनिक उपेक्षा की शिकार।
दुष्कर्म के बाद जन्म और मौन पीड़ा
महिला के पति के हत्या के एक मामले में जेल में बंद होने के दौरान उसके साथ ठगों ने पहले सामूहिक दुष्कर्म किया इस दर्दनाक घटना के बाद उसने एक बच्चे को भी जन्म दिया। पति के जेल से लौटने के बाद उसने अपनी पीड़ा साझा की, तब जाकर मामला प्रकाश में आया।
एफआईआर न होना – न्याय की पहली हार
सबसे चिंताजनक बात यह रही कि जब पीड़िता ने थाने में जाकर शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया, तो एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई। यह रवैया साफ दर्शाता है कि आदिवासी महिलाओं की शिकायतें आज भी तंत्र की प्राथमिकताओं में नहीं हैं। अंततः, न्याय की आस में वह महिला अब सरगुजा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पास पहुंची।
मुआवजा भी लूट लिया दुष्कर्मियों ने
पीड़िता पर दूसरी चोट तब पड़ी जब उसके बेटे की सर्पदंश से मृत्यु पर मिले चार लाख रुपये मुआवजे को कुछ लोगों ने इन्वेस्टमेंट के नाम पर ठग लिया। आरोपियों ने महिला को बहलाकर बैंक से पैसे निकलवाए और अंततः पूरी राशि हड़प ली गई।
प्रशासनिक चुप्पी और सामाजिक असंवेदनशीलता
इस दोहरी त्रासदी में सबसे चिंताजनक पक्ष रहा पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता। एक आदिवासी महिला के साथ बलात्कार और आर्थिक शोषण दोनों मामलों में निष्क्रियता यह दर्शाती है कि शासन-प्रशासन ने उसे पूरी तरह असहाय छोड़ दिया। क्या आदिवासी महिलाओं की आवाज अब भी अनसुनी ही रह जाएगी?
एसपी से गुहार के बाद मिला आश्वासन
थाने से मिली निराशा के बाद जब पीड़िता पुलिस अधीक्षक से मिली, तो अधिकारियों ने मामले की गंभीरता को स्वीकार करते हुए जांच और उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया जा रहा है। मैनपाट की यह घटना सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की उन हजारों महिलाओं की कहानी है, जो व्यवस्था की खामियों का बोझ ढो रही हैं। शासन-प्रशासन को अब संवेदनशीलता और जवाबदेही के साथ कदम उठाने होंगे ताकि न्याय की यह चीख जंगलों में खो न जाए।
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