क्या राजनीतिक दबाव में सुलझा मामला…?
कांकेर:- नगर पालिका के एक युवा कांग्रेसी पार्षद की कथित प्रेम कहानी ने कांकेर की राजनीति को हिला कर रख दिया है। मामला तब सुर्खियों में आया जब एक विधवा महिला ने पार्षद पर शादी का झांसा देकर शोषण करने का आरोप लगाया और इसकी लिखित शिकायत थाने में दर्ज कराई। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि कुछ ही घंटों में महिला ने अपनी शिकायत वापस ले ली, जिससे इस मामले में नया मोड़ आ गया है।
Page16 ने किया खुलासा
इस पूरे मामले को सबसे पहले उजागर Page16 ने किया था। रिपोर्ट में बताया गया कि पार्षद और दो बच्चों की मां विधवा महिला के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध थे। महिला का आरोप है कि पार्षद ने उसे शादी का वादा कर संबंध बनाए, लेकिन बाद में जब उसका रिश्ता किसी अन्य जगह तय हुआ, और पार्षद ने उस विधवा महिला से शादी से साफ इंकार किये तो महिला ने पूरे मोहल्ले में हंगामा करते हुए उसकी सच्चाई उजागर कर दी।
शिकायत वापस लेने से नए सवाल
शिकायत होने के बाद नगर में हड़कंप मच गया था। लेकिन जब महिला ने शाम होते ही शिकायत वापस ले ली, तो लोगों में अटकलों का दौर शुरू हो गया। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने “डैमेज कंट्रोल” करते हुए महिला को समझाइश दी और मामला शांत करवाया। चर्चा है कि पार्षद ने महिला से दो महीने में शादी करने का वादा किया है, जिसके बाद उसने मामला वापस ले लिया।
पार्षद की छवि सवालों के घेरे में
यह पूरा घटनाक्रम कांग्रेसी पार्षद की नैतिकता और जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करता है:
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क्या एक जनप्रतिनिधि अपने पद का दुरुपयोग कर सकता है?
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क्या पार्टी ऐसे मामलों में नैतिक जिम्मेदारी निभाएगी?
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यदि महिला का आरोप सत्य है, तो क्या सिर्फ शादी के वादे से मामला खत्म माना जा सकता है?
अवैध कब्जा और राजनीतिक चुप्पी
कांग्रेसी पार्षद की प्रेम कहानी उजागर होने के बाद अब उसी पार्षद से जुड़े एक और नए पहलू ने आग में घी डालने का काम किया है। बताया जा रहा है कि कांग्रेसी पार्षद ने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर भवन निर्माण कर रखा है, जो अलग से जांच का एक नया हिस्सा है। इधर भाजपा की ओर से इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। यह वही भाजपा है जो कांग्रेस पर अक्सर नैतिक पतन के आरोप लगाती रही है, लेकिन इस मामले में न तो कोई बयान आया और न ही कोई प्रतिक्रिया।
शिकायत वापस लेकर महिला ने खुद को पीछे जरूर खींच लिया है, लेकिन सवाल अब भी वहीं खड़े हैं। क्या यह केवल व्यक्तिगत मामला है या सार्वजनिक जिम्मेदारी निभाने वाले जनप्रतिनिधियों के चरित्र और पार्टी की नैतिकता का भी मामला है? अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि क्या पार्षद अपने वादे पर खरा उतरता है या यह मामला भी सियासी धूल में दबा रह जाएगा।
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