
धमतरी:- उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में करीब 20 साल बाद बाघ की मौजूदगी ने वन विभाग और पर्यावरण प्रेमियों में नई ऊर्जा भर दी है। लंबे समय से वीरान पड़े जंगलों में अब वन्यजीवों की चहलकदमी और बाघ की दहाड़ सुनाई देने लगी है। यह परिवर्तन वन अधिकारियों की सतत मेहनत और संरक्षण के ठोस प्रयासों का नतीजा है।
18 मई 2025 को टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बाघ के पगचिन्हों की पुष्टि हुई, जिसके बाद वन विभाग ने तत्काल 150 ट्रैप कैमरे पूरे क्षेत्र में लगाए। आठ दिनों तक बाघ के लगातार मूवमेंट की तस्वीरें रिकॉर्ड हुईं। 26 मई को एक मवेशी के शिकार की घटना कैमरे में कैद हुई, जिसने बाघ की उपस्थिति को पूरी तरह प्रमाणित कर दिया।
इसके बाद से विभाग ने वनग्रामों में मुनादी कर आमजनों को सतर्क किया है, और जंगल की ओर अनावश्यक न जाने की अपील की जा रही है।
2005 की वन्यजीव गणना में धमतरी जिले में पांच बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। इसके बाद 2006 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित करने का प्रस्ताव भेजा गया और 2009 में यह क्षेत्र आधिकारिक रूप से उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व बन गया। लेकिन तब से अब तक बाघों की दहाड़ इस क्षेत्र में सुनाई नहीं दी। अवैध कटाई, अतिक्रमण और शिकार की बढ़ती घटनाओं ने जंगलों को वीरान कर दिया था।
इन उपायों का असर जंगलों में स्पष्ट दिखने लगा। अब हिरण, नीलगाय, बायसन, तेन्दुआ और कई विलुप्तप्राय प्रजातियों की आमद कैमरों में रिकॉर्ड हो रही है।
वन विभाग अब महाराष्ट्र से बाघ और बाघिन लाकर प्रजनन के माध्यम से इस क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है। इससे न सिर्फ छत्तीसगढ़ के धमतरी और गरियाबंद जिले जैवविविधता में समृद्ध होंगे, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी मजबूत होगा।
वरुण जैन, उप निदेशक, टाइगर रिजर्व
“हमारा उद्देश्य सिर्फ बाघों की वापसी नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करना है। संरक्षण ही भविष्य है।”
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