संगठनात्मक शिथिलता बनी पालिका चुनाव में हार की वजह ?

कांकेर :- लोकसभा चुनाव के बाद निकाय चुनावों में भी मिली करारी शिकस्त के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस अब अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में जुटी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के भीतर अब यह चर्चा जोरों पर है कि पार्टी को अब “शादी में नाचने वाले घोड़ों” की नहीं, बल्कि “रेस जीतने वाले घोड़ों” की ज़रूरत है। लेकिन सवाल यह है कि रेस के घोड़े आएं भी तो कहां से, जब पार्टी के अपने ही घुड़सवार संगठन की लंका लगाने में लगे हों ?
भाजपा मैदान में जुटी, कांग्रेस समीक्षा तक नहीं कर पाई
भाजपा जहां लगातार संगठनात्मक स्तर पर नीचे से ऊपर तक बदलाव कर ब्लॉक और बूथ स्तर पर सक्रियता दिखा रही है, वहीं कांग्रेस आज भी हार की समीक्षा तक नहीं कर सकी है। पार्टी के भीतर बगावत करने वालों पर कार्यवाही की लेटलतीफी और संगठन की निष्क्रियता ने कांग्रेस को गंभीर संकट की ओर धकेल दिया है।
चार महीने बाद हुई बगावत पर कार्यवाही
कांकेर नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस के कब्जे वाले सीटों पर पार्टी को 50 साल बाद हार का मुंह देखना पड़ा। महादेव वार्ड से कांग्रेस के युवा नेता मोनू शादाब ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा, और हार गए। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि चुनाव के करीब 4 महीने बाद, यानी 31 मई 2025 को, जिला कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित किया गया।
बगावत के सबूत मांगने की नौबत
जानकार बताते हैं कि हार के तुरंत बाद किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई। उलटे पार्टी ने जीतने वाले कांग्रेसी से बगावत के सबूत मांगे-यह घटनाक्रम कांग्रेस संगठन की कमजोरी और भ्रम की स्थिति को उजागर करता है।
चिंतन-मनन की घड़ी है कांग्रेस के लिए
अब कांग्रेस के सामने कई ज्वलंत सवाल खड़े हैं:
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आखिर कांग्रेस से जनता हर चुनाव में क्यों नाराज़ हो रही है ?
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पार्टी विरोधियों पर कार्रवाई में इतनी देरी क्यों हो रही है ?
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संगठन की रीढ़ माने जाने वाले कार्यकर्ता खुद बगावत क्यों कर रहे हैं ?
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और क्या कांग्रेस के पास अब वाकई “रेस जीतने वाले घोड़े” बचे हैं ?
कांग्रेस को अब विचार करना होगा कि क्या वह वक्त रहते संगठन को पुनर्जीवित कर पाएगी, या फिर यह ढलती सियासत की एक और उदासीभरी दास्तां बनकर रह जाएगी।
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