
कांकेर में वैध-अवैध रेत कारोबार जारी, रमन से विष्णुदेव तक बदलते चेहरे, स्थायी समस्याएँ
कांकेर:- जिले में रेत के वैध और अवैध कारोबार की कहानी भले ही वर्षों पुरानी हो, लेकिन यह कारोबार समय के साथ और ज्यादा संगठित और राजनीतिक रंग में रंगता जा रहा है। पूर्ववर्ती रमन सरकार से लेकर भूपेश बघेल के कार्यकाल और अब विष्णुदेव सिंह के सुशासन में भी यह अवैध गतिविधि बदस्तूर जारी है। नदियों का सीना चीरते चैन माउंटेन, बेधड़क दौड़ते हाईवा ट्रक और सत्ता-प्रशासन की रहस्यमय चुप्पी, सब कुछ जस का तस बना हुआ है।
हेलीकॉप्टर निगरानी का वादा, लेकिन हकीकत में मशीनों का कहर
वर्तमान सरकार ने सत्ता में आते ही रेत खदानों पर हेलीकॉप्टर से निगरानी का वादा किया था, लेकिन जमीनी हकीकत में हेलीकॉप्टर तो कहीं नजर नहीं आया। उल्टा नदियों में बड़ी-बड़ी मशीनें और माफियाओं की गाड़ियाँ बेरोकटोक रेत उत्खनन में लगी हैं। नदियों का जलस्तर गिरता जा रहा है, तटीय इलाकों में कटाव बढ़ रहा है, लेकिन शासन-प्रशासन इन गंभीर पर्यावरणीय और आर्थिक अपराधों पर मौन साधे बैठा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप और नेताओं की बदलती भूमिका
रेत कारोबार में नेताओं की भागीदारी कोई नई बात नहीं है। रमन सरकार के समय जिस एक भाजपा नेत्री का दबदबा इस कारोबार में था, उसका प्रभाव भूपेश सरकार में भी देखने को मिला। नारा रेत खदान की नीलामी के बाद देखने को मिला कैसे भाजपा नेत्री ने कांग्रेस दो नेताओं के नाक में चने चबा नदी से एक ढेला रेट नहीं निकालने दिया था और थक हारकर कांग्रेसी नेताओं ने नारा रेत खदान मजबूरी में भाजपा नेत्री को दे सिर्फ कमीशन में संतुष्ट रहना पडा था, ये खेल इस बात का प्रमाण है कि किस तरह नेता रेत कारोबार से सीधा जुड़ाव रखते हैं। अब विष्णुदेव सिंह के सुशासन काल में रेत के इस कारोबार में भाजपा की एक और नेत्री की इंट्री ने नए समीकरण खड़े कर दिए हैं। स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर मिल रही जानकारी के अनुसार, चारामा क्षेत्र में एक भाजपा नेता द्वारा एक नेत्री को पंचायत चुनाव में आर्थिक मदद से चुनाव में जीत दिलवाई गई थी। अब वही भाजपा नेत्री भानुप्रतापपुर विधानसभा चुनाव 2028 की तैयारी में रेत कारोबार को वित्तीय आधार बना रही है। उनके इर्द-गिर्द रेत माफियाओं और स्थानीय भाजपा नेताओं की गोलबंदी चर्चा का विषय बन चुकी है।
राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक निष्क्रियता का मिला-जुला असर
रेत तस्करी पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों पर है, वे माफियाओं से सांठगांठ कर आंखें मूंदे बैठे हैं। ग्रामीणों द्वारा बार-बार अवैध उत्खनन पर आपत्ति जताने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। उलटा, जो लोग माफियाओं का विरोध करते हैं, उन्हें ही प्रशासनिक दबाव में लाया जाता है। क्षेत्र के जागरूक नागरिकों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही अवैध रेत उत्खनन पर कार्रवाई नहीं की गई, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे।
कांकेर और भानुप्रतापपुर में रेत कारोबार केवल अवैध तस्करी या पर्यावरण संकट का विषय नहीं रह गया है। यह एक राजनीतिक संरक्षण, सत्ता की मिलीभगत और प्रशासनिक लापरवाही का ज्वलंत उदाहरण बन चुका है। जब तक शासन-प्रशासन राजनीतिक प्रभाव से ऊपर उठकर निष्पक्ष कार्यवाही नहीं करता, तब तक यह कारोबार फलता-फूलता रहेगा और जनता सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रह जाएगी।
विधायक की खामोशी कांग्रेस को कही महंगी ना पड़ जाए
भानुप्रतापपुर और दुर्गुकोंदल क्षेत्रों में इन दिनों अवैध रेत उत्खनन का मुद्दा दिन-ब-दिन तूल पकड़ता जा रहा है। रेत के अवैध कारोबार को लेकर लगातार अखबारों और सोशल मीडिया में खबरें आ रही हैं, जिससे स्थानीय जनता और ग्रामीण कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नाराजगी साफ देखी जा रही है। इसके बावजूद क्षेत्र के वर्तमान विधायक और वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की चुप्पी ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। राजनीतिक जानकारों कि माने तो अगर यही स्थिति बनी रही तो 2028 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पकड़ पर पड़ सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ही भाजपा धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। ऐसे में अवैध रेत उत्खनन जैसे जनहित के मुद्दों पर कांग्रेस नेताओं की निष्क्रियता भाजपा के लिए अवसर में बदल सकती है। भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ओर से नए चेहरों की संभावित एंट्री और रणनीतिक गतिविधियों ने यह संकेत देना शुरू कर दिया है कि भाजपा इस मुद्दे को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। चर्चाएं यह भी हैं कि भाजपा की एक प्रभावशाली नेत्री, जो पूर्व में पंचायत चुनावों में सक्रिय रही हैं, अब 2028 के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटी हैं। और कही भानुप्रतापपुर विधानसभा से भाजपा की नई किरण ना निकल जाए
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