छत्तीसगढ़ में शराब नीति और नशा नियंत्रण को लेकर बार-बार शासन बदलने के बावजूद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में शराब के कोचियों और माफियाओं पर लगाम लगाने के उद्देश्य से सरकारी शराब दुकानों की शुरुआत की गई थी। इस नीति से सरकार को तो भारी राजस्व प्राप्त हुआ, लेकिन नशे के अवैध कारोबार पर पूर्ण विराम नहीं लग पाया। वर्षों बाद कांग्रेस सरकार के दौरान भी आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे और कथित शराब घोटाले में पूर्व आबकारी मंत्री सहित कई अफसर जेल पहुंच गए।
अब जबकि राज्य में भाजपा की सरकार फिर से डबल इंजन सरकार के साथ सत्ता में है और विष्णुदेव साय के नेतृत्व में सुशासन के वादे किए जा रहे हैं, फिर भी अवैध शराब, सूखे नशे और अपराधों का ग्राफ नीचे नहीं आ रहा। हालांकि शराब दुकानों के सरकारीकरण के बाद सार्वजनिक स्थलों, होटल, ढाबों और हाइवे किनारे शराब सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू किया गया है, लेकिन हकीकत इससे उलट है। रायपुर-जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-30) पर संचालित कई ढाबों में आज भी खुलेआम शराब बेची और परोसी जा रही है।
इस लापरवाही का भयावह उदाहरण 19 जुलाई की दरमियानी रात को सामने आया, जब कुलगांव के पास एक कार नशे की हालत में अनियंत्रित होकर पुल की रेलिंग से टकरा गई और आग लगने से चार युवकों की ज़िंदा जलने से दर्दनाक मौत हो गई। दो घायल युवकों ने अपने बयान में कबूला कि उन्होंने पहले एक ढाबे से शराब खरीदी और वहीँ बैठकर पी, फिर कांकेर से लौटते वक्त यह हादसा हुआ। इस हादसे के बाद जिले में यातायात पुलिस ने ड्रंक एंड ड्राइव के खिलाफ अभियान चलाया। शहर में चेकिंग पाइंट लगाए गए और शराब मापक यंत्र से जांच की गई। लेकिन एक माह भी नहीं बीता कि केशकाल घाट के नीचे फिर से ढाबों में शराब परोसने का सिलसिला शुरू हो गया।
Page16 को मिले फोटो सबूत में, कांकेर और केशकाल घाट के बीच एक ढाबे में व्यक्ति को खुलेआम शराब पीते दिखाई पड़ रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रशासन की कार्रवाई का असर सीमित और अस्थायी ही रहा। शराब की जांच तो ब्रेथ एनालाइज़र से की जा रही है, लेकिन सूखे नशे (मुनक्का, नशीली गोलियाँ,) के सेवन को पकड़ने के लिए न तो कोई जांच यंत्र है और न ही ट्रैफिक पुलिस के पास जरूरी प्रशिक्षण। ऐसे में कई ड्राइवर सूखे नशे में वाहन चलाकर स्वयं और दूसरों की जान जोखिम में डाल रहे हैं।
एक और चिंता का विषय है आबकारी विभाग की निष्क्रियता। गली-मोहल्लों, होटल और ढाबों में हो रही अवैध शराब बिक्री पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखी है। ग्रामीण इलाकों में महुआ शराब बनाने वालों पर कार्रवाई की जा रही है, लेकिन वो भी डायरी मेंटेन करने तक ही सीमित है। इस बीच जिले के अलग-अलग हिस्सों से अवैध शराब बिक्री की खबरें लगातार सामने आ रही हैं, लेकिन जवाबदेही कहीं नहीं दिखती।
जिले में अवैध शराब बिक्री और कार्यवाही के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो जिला आबकारी विभाग से एक माह प्राप्त आकड़ों से समझा जा सकता है की 15 जुलाई तक लगभग 49 मामले दर्ज किये है जिसमें सबसे अधिक महुआ शराब 45 लीटर, विदेशी मदिरा 17 लीटर एंव देशी मदिरा 04 लीटर जब्त कर कार्यवाही की गई है जबकि नगर सहित पुरे जिले के होटल ढाबों और गाँवों में कोचिये देशी-विदेशी अवैध शराब की बिक्री करने की शिकायत आये दिन सामने आते ही रहते है
वही दुसरी तरफ सडक हादसों को रोकने वाली यातयात पुलिस के आकड़ों पर गौर करे तो 03 माह में ही ड्रंक एंड ड्राइव के लगभग 27 मामले बना शराबी वाहन चालकों से करीबन 02 लाख 70 हजार का जुर्माना किया गया जिसमें सिर्फ जुलाई में 01.50 हजार का जुर्माना आँकड दर्ज है ऐसे में ये बात तो साफ कि लोग शराब पीकर वाहन चलने से बाज नहीं आ रहे है।
कांकेर जैसे अति संवेदनशील जिले में जहां एक ओर नक्सली गतिविधियाँ चिंता का विषय हैं, वहीं अब अवैध शराब और सूखे नशे ने भी नई सामाजिक चुनौती खड़ी कर दी है। बड़े-बड़े हादसों के बाद भी प्रशासनिक तंत्र की सुस्ती सवाल खड़े कर रही है-क्या हमें हर बार एक नई त्रासदी का इंतजार करना पड़ेगा जागने के लिए?
वही दोनों विभाग के ज़िम्मेदारों का कहना है कि सूचना और शिकायतों पर जरुर कार्यवाही की जाती है नियम कायदों का उल्लघंन करने वालों पर आगे भी कार्यवाही की जावेगी
राज्य सरकार को चाहिए कि वह महज दिखावटी अभियान की बजाय स्थायी निगरानी तंत्र, संसाधनयुक्त पुलिसिंग और जवाबदेही तय करने की नीति बनाए-तभी कांकेर और बस्तर की सड़कों पर असमय होने वाली मौतों पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
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